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नागरिक सहकारी बैंक मर्यादित दुर्ग

नागरिक सहकारी बैंक मर्यादित दुर्ग ने सहकारिता के साथ बैंकिंग सेवा के क्षेत्र में अद्भूत मिसाल कायम की है। 30 वर्ष पूर्व दुर्ग शहर के जागरूक नागरिकों के समवेत प्रयास से नाममात्र की अंषपूजी पर प्रारंभ इस बैंक ने अपने सदस्यों व ग्राहकों के बीच एक विष्वसनीय साख बना ली है। बैंक 5114 सदस्यों की 74.41 लाख अंषपूंजी एवं 20 करोड़ कार्यषील पूंजी के साथ सफलता का नित नये सोपान तय कर रहा है और कई राष्ट्रीयकृत बैंकों से प्रतिस्पर्धा कर रहा है। दुर्ग के नागरिकों के द्वारा शहर में अपने स्वयं के बैंक की आवष्यकता लम्बे समय से महसूस की जा रही थी, उसकी इस परिकल्पना की नींव 4 अप्रैल 1986 को अषोक अग्रवाल जिला थोक उपभोक्त सहकारी भण्डार के पूर्व अध्यक्ष, उस समय के नगर के वरिष्ठ पत्रकार स्व. श्री अषोक तिवारी, श्री प्रकाष जैन एवं वरिष्ठ अधिवक्ता श्री भंवरलाल जी जैन की उपस्थिति में जनपद पंचायत दुर्ग के सभा गृह में आयोजित बैठक रखी गई। उक्त बैठक में नगर के 46 नागरिकगण उपस्थित थे, जिसमें बैंक के गठन किया जाने का प्रस्ताव सर्वसम्मति से पारित किया गया। बैठक की अध्यक्षता जिला पंचायत दुर्ग के तत्कालीन सभापति श्री पुकेष्वर भारदीय ने की थी। बैठक में दुर्ग के वर्तमान सांसद श्री ताम्रध्वज साहू भी उपस्थित थे। बैठक में नागरिक सहकारी बैंक के गठन के लिए एक तदर्थ समिति का गठन किया गया। जिसके अध्यक्ष श्री निर्मल सिंह बल एवं कार्यकारिणी सदस्य में सर्व श्री अषोक तिवारी, अषोक अग्रवाल, प्रकाष जैन, प्रकाष देषलहरा, नत्थुलाल राठी, महेन्द्र प्रताप वर्मा, कमलनारायण रूंगटा, मदन जैन, कल्याण सिंह अग्रवाल ताराचंद जैन एवं श्री सतीष जैन को लिया गया। बैठक में बैंक के लिए आवष्यक अंषपूंजी एकत्र करने का निर्णय लिया गया। दो साल के अल्पावधि में लगभग 2500 से अधिक सदस्य बनाये गये एवं लगभग 4.50 लाख से अधिक अंषपूंजी एकत्र किया। बैंक का पंजीयन संयुक्त पंजीयक सहकारी समिति द्वारा दिनांक 07.07.1988 को किया गया। पंजीयन के पश्चात् दिनांक 08.02.1989 को बैंक के संचालक मण्डल का प्रथम निर्वाचन संपन्न हुआ। उक्त निर्वाचन में सर्वश्री निर्मल सिंह बल, अषोक तिवारी, अषोक अग्रवाल, कल्याण सिंह अग्रवाल, मदन लाल कोठारी, मदन जैन, प्रकाष जैन, नत्थुलाल राठी एवं कमलनारायण रूंगटा चुने गये, महिला संचालक के निर्विरोध निर्वाचन में श्रीमती प्रतिभा चैहान चुनी गई। संचालक मण्डल के निर्वाचन के पश्चात् श्री निर्मल सिंह बल को अध्यक्ष एवं अषोक अग्रवाल को उपाध्यक्ष चुना गया। प्रथम निर्वाचन के पष्चात् बैंक के लायसेंस लेने की प्रक्रिया प्रारंभ की गई। इस प्रक्रिया के तहत् बैंक के उपाध्यक्ष अषोक अग्रवाल, भंवरलाल जैन एवं अषोक तिवारी के साथ भारतीय रिजर्व बैंक के मुख्यालय बम्बई गये। बम्बई में भारतीय रिजर्व बैंक के शहरी बैंक शाखा के प्रभारी बैंक गवर्नर से मिलकर दुर्ग बैंक को लायसेंस दिये जाने के औचित्य पर प्रकाष डालते हुए बैंक को लायसेंस दिये जाने का निवेदन किया। साथ ही राजनितिक स्तर पर प्रयास करते हुए तत्कालीन केन्द्रीय मंत्री श्री मोतीलाल वोरा, तत्कालीन सांसद श्री अरविंद नेताम से निवेदन कर बैंक का तत्काल लायसेंस दिलाने में सहायता हेतु अनुरोध किया। बैंक के लायसेंस एवं पंजीयन के कार्य में साजा के तत्कालीन विधायक श्री रविन्द्र चैबे का भी महत्वपूर्ण योगदान रहा। फलस्वरूप दिनांक 24 अक्टूबर 1989 को भारतीय रिजर्व बैंक से लायसेंस प्राप्त हो गया एवं दिनांक 21 मार्च 1990 को बैंक का शुभारंभ स्थित दुर्ग इंदिरा मार्केट में रायपुर संभाग के तत्कालीन आयुक्त श्री मोहिले के मुख्य आतिथ्य एवं दुर्ग के तत्कालीन जिलाधीष श्री विवेक ढांढ की अध्यक्षता में आयोजित समारोह में किया गया। प्रारंभ में बैंक जिला सहकारी केन्द्रीय बैंक के तत्कालीन अध्यक्ष श्री डोमेन्द्र भेंडिया एवं बैंक के महाप्रबंधक श्री चोपड़ा के सहयोग से जिला सहकारी केन्द्रीय बैंक के दो अधिकारी व कर्मचारी राकेष कुमार दीक्षित को प्रबंधक एवं सी.एल. चंद्राकर की सेवायें नागरिक सहकारी बैंक मर्यादित दुर्ग को उपलब्ध करायी गईं तथा नागरिक सहकारी बैंक मर्यादित दुर्ग द्वारा सतीष अग्रवाल को लिपिक एवं चंद्रषेखर ताम्रकार को भृत्य पद पर नियुक्त करते हुए सीमित संसाधनों से बैंक का कार्य चलाया गया। बैंक के गठन के प्रस्ताव के पश्चात् एवं लायसेंस प्राप्त होने एवं कार्य प्रारंभ होने तक बैंक का कार्यालय जिला थोक उपभोक्ता सहकारी भण्डार के सदर बाजार कार्यालय से संचालित किया गया। जिसमें वहां के कर्मचारियों ने बहुत योगदान दिया। साथ ही शहर की उत्साही समाजसेवी सर्वश्री देवराज जैन, शांति लाल जी जैन (अधिवक्ता), विजय कर्नावट, ने अंषपूंजी जुटाने में काफी मदद की। इस बैंक को आज इस स्थिति मेें पहुंचाने पदाधिकारियों, संचालक मण्डल के सदस्यों के साथ ही बैंक कर्मियों ने भरपूर मेहनत की है। बैंक की स्थापना के बाद यहाँ संचालक मण्डल में अलग-अलग विचारधारा व राजनीतिक दलों से जुडे लोग निर्वाचित होते आयें है लेकिन उन्होंने कभी राजनीतिक महत्वाकांक्षा व विचारधारा को बैंक के काम-काज में हावी होने नहीं दिया। सभी ने हमेषा सहकारिता की भावना से एकजुट होकर बैंक के हित में काम किया। जिसका परिणाम आज सबके सामने है। इस बैंक ने शहर के लोगों के बीच अपनी अलग साख व विष्वसनीयता कायम की है, वहीं प्रदेष में बेहतर बैंकिंग सेवाओं के लिए पहचाने जाने वाले सहकारी बैंक की सूची में भी यह शुमार हो चुका है। भविष्य में भी यह बैंक अपने सदस्यों, ग्राहकों की सेवाओं के लिए सदैव तत्पर रहेगा।

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